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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर समाज में बेटी को घर की लछमी माना जाता है फिर भी कन्या भूर्ण हत्या क्यों ?

हिन्द सम्बाद आसनसोल इम्तियाज़ खान – 8798384325 दुनिया की आधी आबादी को सम्मान देने के लिए ही हर वर्ष 8 मार्च को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का जरूर कुछ असर दिखने लगा है। इस अभियान से अब देश में महिलाओं के प्रति सम्मान बढने लगा है। जो इस बात का अहसास करवाता है कि आने वाले समय में महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया सकारात्मक होने वाला होगा। विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी नहीं है। आज भी महाराष्ट्र के बीड़, गुजरात के सूरत, भुज में घटने वाली महिला उत्पीडन की घटनाये सभ्य समाज पर एक बदनुमा दाग लगा जाती है। देश में आज भी सबसे ज्यादा उत्पीडन महिलाओं का ही होता है। आये दिन महिलाओं के साथ बलात्कार, हत्या, प्रताडना की घटनाओं से समाचार पत्रों के हेड लाइनों में पन्ने भरे रहते हैं। महिलाओं के साथ आज के युग में भी दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। बाल विवाह की घटनाओं पर पूर्णतया रोक ना लग पाना एक तरह से महिलाओं का उत्पीडन ही है। कम उम्र में शादी व कम उम्र में मा बनने से लडकी का पूर्ण रूप से शारीरिक व मानसिक विकास नहीं हो पाता है। आज हम बेटा बेटी एक समान की बातें तो करते हैं मगर बेटी होते ही उसके पिता को बेटी की शादी की चिंता सताने लग जाती है। समाज में जब तक दहेज लेने व देने की प्रवृति नहीं बदलेगी तब तक कोई भी बाप बेटी पैदा होने पर सच्चे मन से खुशी नहीं मना सकता है।हाला की पश्चिम बंगाल की ममता सरकार महिलाओ के सम्मान में कई योजना सुरु की थी जो काफी लोकप्रिय हुई है जैसे रूपों श्री कन्याश्री और भी कई योजनाए महिलाओ के सम्मान में चल रहे है
महिला दिवस पर देश भर में अनेको स्थान पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। मगर अगले ही दिन उन सभी बातों को भुला दिया जाता है। समाज में अभी पुरूषवादी मानसिकता मिट नहीं पायी है। समाज में अपने अधिकारों एवं सम्मान पाने के लिए अब महिलाओं को स्वयं आगे बढना होगा। देश में जब तक महिलाओं का सामाजिक, वैचारिक एवं पारिवारिक तौर पर उत्थान नहीं होगा तब तक महिला सशक्तिकरण की बाते करना बेमानी होगा।कहने को तो सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं एकजुट होकर महिला दिवस को मनाती हैं। मगर हकीकत में यह सब बाते सरकारी दावों व कागजो तक ही सिमट कर रह जाती है। देश की अधिकांश महिलाओं को तो आज भी इस बात का पता नहीं है कि महिला दिवस का मतलब क्या होता है। महिला दिवस कब आता है कब चला जाता है। भारत में अधिकतर महिलायें अपने घर-परिवार में इतनी उलझी होती है कि उन्हे बाहरी दुनिया से मतलब ही नहीं होता है। लेकिन इस स्थिति को बदलने का बीड़ा महिलाओं को स्वयं उठाना होगा। जब तक महिलायें स्वयं अपने सामाजिक स्तर व आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं करेगी तब तक समाज में उनका स्थान गौण ही रहेगा।
दुख की बात यह है कि नारी सशक्तिकरण की बातें और योजनाएं केवल शहरों तक ही सिमटकर रह गई हैं। एक ओर शहरों में रहने वाली महिलाएं शिक्षित, आर्थिक रुप से स्वतंत्र हैं जो पुरुषों के अत्याचारों का मुकाबला करने में सक्षम है। वहीं दूसरी तरफ गांवों में रहने वाली महिलाओं को तो अपने अधिकारो का भी पूरा ज्ञान नहीं हैं। वे चुपचाप अत्याचारों सहती रहती है और सामाजिक बंधनों में इस कदर जकड़ी है कि वहां से निकल नहीं सकती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दोगुने से भी अधिक हुए हैं। पिछले दशक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ अपराध के 26 मामले दर्ज होते है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार महिलाओं के प्रति की जाने वाली क्रूरता में वृद्धि हुई है। कहने को तो सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं एकजुट होकर महिला दिवस को मनाती हैं। मगर हकीकत में यह सब बाते सरकारी दावों व कागजो तक ही सिमट कर रह जाती है। देश की अधिकांश महिलाओं को तो आज भी इस बात का पता नहीं है कि महिला दिवस का मतलब क्या होता है। महिला दिवस कब आता है कब चला जाता है। भारत में अधिकतर महिलायें अपने घर-परिवार में इतनी उलझी होती है कि उन्हे बाहरी दुनिया से मतलब ही नहीं होता है। लेकिन इस स्थिति को बदलने का बीड़ा महिलाओं को स्वयं उठाना होगा। जब तक महिलायें स्वयं अपने सामाजिक स्तर व आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं करेगी तब तक समाज में उनका स्थान गौण ही रहेगा।घरेलू हिंसा अधिनियम देश का पहला ऐसा कानून है जो महिलाओं को उनके घर में सम्मानपूर्वक रहने का अधिकार सुनिश्चित करता है। इस कानून में महिलाओं को सिर्फ शारीरिक हिंसा से ही नहीं बल्कि मानसिक, आर्थिक एवं यौन हिंसा से बचाव करने का अधिकार भी शामिल है। भारत में लिंगानुपात की स्थिति भी अच्छी नहीं मानी जा सकती है। लिंगानुपात के वैश्विक औसत 990 के मुकाबले भारत में 941 ही है। हमें भारत में लिंगानुपात सुधारने की दिशा में विशेष काम करना होगा। ताकि लिंगानुपात की खराब स्थिति को बेहतर बनायी जा सके। कन्या भूर्ण हत्या जागरूग समाज में बा दश्तूर जारी है इसपर नकेल क्षणे में समाज नाकाम है और सरकारों पर लोग दोषारोप करते है ये सब चीज तो खुद ही सोचना है की हमारे घर बेटी पैदा हो पले बढ़े हर समाज में बेटी को घर की लछमी मन जाता है फाई भी कन्या भूर्ण हत्या क्यों

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