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स्वामी विवेकानंद की जयंती मनाई गई आसनसोल में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये

हिन्द संबाद : आसनसोल : मंगलवार को स्वामी विवेकानंद की जयंती पर आसनसोल में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये। कोरोना संकट के कारण इस बार सादगी के साथ जयंती मनाई गई। आर के मिशन की ओर से जुबली मोड़ स्थित विवेकानंद पार्क में आर के मिशन आसनसोल के सचिव स्वामी सोमात्मानंद जी महाराज, श्रम, कानून एवं पीएचई मंत्री मलय आसनसोल दुर्गापुर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन तापस बनर्जी, आसनसोल नगर निगम के चेयरपर्सन अमरनाथ चटर्जी सहित अन्य ने माल्यार्पण किया। इस दौरान मेधावी विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया । राहालेन स्थित म्यूनिसिपल पार्क में प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। आसनसोल कांग्रेस जिला पार्टी कार्यालय में स्वामी विवेकानंद की जन्म दिवस पालन किया गया जिसे विवेकानंद की प्रतिमा में माल्यार्पण किया इस कार्यक्रम में शाहिद परवेज प्रसनजीत कुंडी सभी कांग्रेस कार्यकर्ता उपस्थित हो कर माल्यार्पण किया उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद की राशि में अमृत चलते हैं और बंगाल की यह एक शोभा है जिसे हम हर वर्ष उन्हें माल्यार्पण कर श्रद्धा अर्पण करते हैं कुल्टी अंचल थे साक्टोरिया में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया साथ ही साथ गरीब लोगों को कंबल वितरण किया गया इस कार्यक्रम में आसनसोल के श्रम मंत्री घटक उपस्थित थे साथी साथ आसनसोल नगर निगम के मिनिस्टर चेयर पर्सन अमरनाथ चटर्जी भी उपस्थित थे और सभी कौन सी ल और कार्यकर्ता मिलकर इस कार्यक्रम को किया साथी साथ आज विवेकानंद की जन्म पृष्ठ पर मूर्ति में माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पण की १२ जनवरी को विश्व युवा दिवश के रूप में मनाते है स्वामी विवेकानन्द(स्वामी विवेकानंद) (जन्म: 12 जनवरी,1863 – मृत्यु: 4 जुलाई,1902) वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत (वेदान्त) दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों” के साथ करने के लिये जाना जाता है।[4] उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थपरिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति अथेअथ जो मनुष्य दूसरे जरूरत मंदो मदद करता है या सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में विवेकानंद को एक देशभक्त सन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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