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उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दलों द्वारा ध्रुवीकरण या टूरिष्टिकरण की कोशिशें होती हैं

हिन्द संबाद आसनसोल इम्तियाज़ खान : उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जाएंगे जातीय ध्रुवीकरण तेज होता जाएगा। यहां राज्य में दो तरह के ध्रुवीकरण की कोशिशें होती हैं। पहली कोशिश धार्मिक स्तर पर और दूसरी जातीय समीकरणों को साधकर की जाती है जिसे राजनीतिक दलों द्वारा बड़ी चालाकी से सोशल इंजीनियरिग का नाम दे दिया जाता है। दरअसल उत्तर प्रदेश की आबादी में मुस्लिमों, एससी, एसटी व अन्य पिछड़ा वर्ग की अच्छी-खासी संख्या में होने के चलते उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण है हालांकि वुल आबादी में मुस्लिमों की संख्या के प्रातिशत के मामले में लक्षदीप, जम्मूकश्मीर, पािम बंगाल और केरल के बाद उत्तर प्रादेश का नम्बर आता है यहां लगभग 4 करोड़ मुस्लिम रहते हैं जो प्रदेश की वुल आबादी का 19 फीसदी हैं। इसका अर्थ है कि राज्य का हर पांचवां नागरिक मुस्लिम है। राज्य के 21 जिलों में 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है जोकि 125 विधानसभा सीटों को प्राभावित करने की क्षमता रखती है। सब जानते हैं कि भाजपा को मुस्लिमों के वोट नाममात्र के मिलते हैं। ऐसे में भाजपा को जीत के लिए एकमुश्त हिन्दू वोट चाहिए। लेकिन यहां हिन्दू भी सवर्ण, एससी-एसटी, दलित व अन्य पिछड़ा वर्ग जैसे कईं खांचों में बंटे हैं। यहां सवर्ण लगभग 20 फीसदी है। इनमें ब्राह्मण सर्वाधिक दस, क्षत्रिय-ठावुर 7.5 और वैश्य व कायस्थ लगभग तीन फीसदी हैं। इन्हीं जातियों के प्रातिनिधियों ने उत्तर प्रादेश में अधिकतर समय राज किया है। इसी वजह से बसपा दलितों और पिछड़ों को इनके विरोध में लामबंद करने का प्रायास करती रही है। वैसे यहां सबसे बड़ा समूह पिछड़ा वर्ग का है जो वुल आबादी का 40 फीसदी यानि लगभग 8 करोड़ हैं। इसमें यादव 9 फीसदी आबादी के साथ सबसे प्राभावशाली समुदाय है। जाट लगभग 7 फीसदी हैं लेकिन वह पश्चिमी उत्तर प्रादेश में ही सिमटे होने के चलते सीमित प्राभाव रखते हैं। इन्हीं समीकरणों को देखते हुए कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के बीच मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए खींचतान तेज होने लगी है।इसके लिए उन्होंने रणनीतियां बनानी शुरू कर दी हैं। कांग्रोस ने इमरान मसूद और इमरान प्रातापगढ़ी को अहम जिम्मेदारी दी है। उधर बीएसपी ने भी पाटा विरोधी गतिविधियों में शामिल बताते हुए अपने एक वरिष्ठ नेता लालजी वर्मा को बाहर का रास्ता दिखाकर शाह आलम उर्प गुड्डू जमाली को विधानमंडल दल का नेता बनाया है। इसे दलित मुस्लिम ध्रुवीकरण के रूप में देखा जा रहा है। उधर सपा सांसद एसटी हसन के उस बयान ने सनसनी मचा दी कि शरीयत में छेड़छाड़ की वजह से लोग आपदा का शिकार हो रहे हैं। उनके इस बयान को भी मुस्लिम ध्रुवीकरण से जोड़ा जा रहा है। ओवैसी भी मुस्लिम ध्रुवीकरण में जीजान से जुटे हुए हैं। जहां तक भाजपा का सवाल है तो वह जीत के लिए हिन्दू वोटों की एकजुटता पर निर्भर है लेकिन उसे एकमुश्त हिन्दू वोट तभी मिलेगा जब हिन्दुओं में जातीय खांचा टूटेगा। योगी सरकार के अतिपिछड़ा वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित जातियों की लिस्ट में डालने और ब्राह्मण नेता जितिन प्रासाद के भाजपा में शामिल होने को चुनावी रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। राज्य में भाजपा को हिन्दू वोटरों का अच्छा-खासा एकमुश्त समर्थन मिलता है जबकि शेष हिन्दू वोटों का बंटवारा कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के बीच होता है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे यह ध्रुवीकरण बढ़ता जाएगा।

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