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सोशल मीडिया का दायरा में विस्तार सूचनाओं के आदान-प्रदान के हिसाब से समूची दुनिया आदी हो इसकी

हिन्द संबाद नई दिल्ली संवाददाता वर्षों पहले जब सोशल मीडिया का दायरा धीरे-धीरे बढ़ा। पहले शहरी क्षेत्रों में जड़ें फैलीं, फिर गांव-देहातों में विस्तार हुआ। तब लोगों को जन संचार के इस नए रूप के फायदे ही फायदे दिखे। सूचनाओं के आदान-प्रदान के हिसाब से कई क्षेत्रों के लिए फ़ायदेमंद है भी। पर, शायद किसी ने सोचा नहीं होगा एक दिन इसकी समूची दुनिया आदी हो जाएंगे। कमोबेश, वैसा हो भी गया। हाल के वर्षों में देखते ही देखते इन जन संचार माध्यमों का दुष्प्रचार इस कदर बढ़ा है, जिससे शासन क्या, प्रशासन को भी मुसीबत में डाल दिया। सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव अब सीधे व्यक्तिगत हो गया है। साथ ही निजता पर अटैक करने लगा है। साइबर कानून के पूरे सिस्टम ने इसके बढ़ते अपराधों को समेटने में घुटने टेक दिए हैं क्योंकि हर किस्म के अपराध में सोशल मीडिया सक्रिय है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के ताजा आंकड़े डरावने हैं। आंकड़ों के मुताबिक अपराध से जुड़ा प्रत्येक पांचवां मामला किसी न किसी रूप में सोशल मीडिया से जुड़ा है। वहीं, पक्षधरों का तर्क है कि सोशल मीडिया के जहरीले समुद्र में युवा पीढ़ी चौबीस घंटे गोते लगा रही है, डूबने से बचने के लिए सरकार ने कदम उठाया है। ये बात सच है कि एकाध सालों में सोशल मीडिया का लोगों ने बेजा इस्तेमाल किया है। तभी सूचना का यह तंत्र बेलगाम हुआ। इनका न कोई संपादक है और न कोई पहरेदार। ऐसे उदाहरण अनगिनत हैं जब एक व्यक्ति का दूसरे के प्रति दुर्भावना रखने पर उसकी इज्जत सोशल मीडिया पर पलक झपकते ही नीलाम की गयी हो। बेवजह की परेशानी से कइयों ने अपनी जानें भी दीं। ऐसे मामलों को देखकर लगता है कि सरकार की सोशल बंदी पर लिया फैसला अच्छा ही है। बहरहाल, कई बातों को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नई गाइडलाइन्स जारी की है। इसे भी पढ़ें: अपने लिये बड़ा लक्ष्य तय कर तरक्की की राह पर आगे बढ़ता जा रहा है भारत नवीन गाइडलाइन्स के मुताबिक सोशल तंत्र केंद्र सरकार को भड़काऊ मैसेज भेजने वालों की पूरी डिटेल देगा। इसके लिए उनको अपना नोडल अधिकारी नियुक्त करना होगा। थोड़ा संदेह होता है कि क्या कंपनियां अपने विभिन्न प्लेटफॉर्म को रेगुलेट करेंगी? जानकारी कुछ ऐसी है कि केंद्र सरकार आईटी-एक्ट के सेक्शन-79 में संशोधन करेगी। साथ ही आईटी एक्ट इंटरमीडियटरी रुल्स-2021 भी लाएगी, जिसका आईटी मंत्रालय अगले एकाध दिनों में ड्राफ्ट भी नोटिफाई करेगी। मंत्रियों की मानें तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अपने कंटेंट को सरकार के कहने पर 24 घंटे में हटाना होगा और अलग 72 घंटे में कार्रवाई भी करनी होगी। मुझे लगता है ये सब कुछ कंपनियों पर ही छोड़ देना, ज्यादा तर्कसंगत नहीं होगा। इसमें सरकार को सक्रिय होना होगा।केंद्र के निर्णय से नोटबंदी-लॉकडाउन की तरह भूचाल आया हुआ है। क्योंकि सोशल मीडिया आज लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा है। कइयों को इसके बिना जीवन अधूरा लगता है। समूचे हिंदुस्तान में तकरीबन 53 करोड़ वॉट्सएप यूज़र हैं। चालीस करोड़ के आसपास फेसबुक इस्तेमाल करते हैं। तो वहीं एक करोड़ के करीब ट्विटर पर मौजूद हैं। इनमें से वॉट्सएप का दुरुपयोग सबसे ज्यादा हो रहा है। हैदराबाद का एक मामला जिसमें कुछ शरारती तत्वों ने प्राइमरी स्कूल की एक टीचर का फोटो एडिट करके गंदी फिल्म में डाल दिया। उसके बाद वॉट्सएप ग्रुप बनाकर पूरे शहर में वायरल कर दिया। महिला टीचर ने बदनामी से अपनी जान दे दी। ये केस मात्र बानगी है। वरना ऐसे मामलों की देशभर में भरमार है। सोशल मीडिया के दंश से सबसे ज्यादा भुक्तभोगी सफ़ेदपोश और नौकरशाह हैं। संशय इस बात का है। कहीं मौजूदा गाइड लाइन भी सफेद हाथी जैसी साबित न हो। क्योंकि इससे पहले भी कई मर्तबा बंदिशें लगी हैं। सुप्रीम कोर्ट भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर डाले जाने वाले कंटेंट को लेकर गाइड लाइन जारी कर चुका है। जिसका न समाज ने पालन किया और न ही केंद्र और राज्य सरकारों ने? इसलिए मौजूदा नकेल कसने की बातों पर ज्यादा इत्तेफ़ाक नहीं होता। इसके लिए बहुत कुछ करना होगा। एक अलग तंत्र और सिस्टम पीछे लगाना होगा। जो चौबीसों घंटे सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों पर कड़ी निगरानी रख सके। जद में आने वाले किसी को नहीं बख्शा जाना चाहिए। फिर चाहे कोई आम हो या खास? सरकार का ये कदम सोशल मीडिया को सुधारने के लिए है। प्रेस काउंसिल जैसा कोड बनेगा, उल्लंघन करने वालों पर आईटी का नया कानून लागू होगा। सवाल एक ये भी उठता है कि क्या ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सरकार की बात को मानेंगे? क्या उनके कहने से आपत्तिजनक कंटेंट हटाएँगे? ये बड़ा सवाल है। फेसबुक की आस्ट्रेलिया जैसे मुल्कों के साथ कैसी ठनी हुई है, ताजा उदाहरण हमारे पास है। फिलहाल इसका तोड़ केंद्र सरकार ने खोजा है। मैसेज का एनक्रिप्शन सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को देगी। उसके बावजूद भी बात नहीं मानी तो संचार के संपूर्ण माध्यम को सरकार को रोकना पड़ेगा। जिसे सरकार आसानी से कर सकती है। सरकार ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर आसानी से नकेल कस सकती है। इसमें बस ईमानदारी से इच्छाशक्ति की जरूरत है और कुछ नहीं? केंद्र सरकार ने बहुत सोच समझकर निर्णय लिया है। सोशल मीडिया पर नियंत्रण सरकार की नहीं, बल्कि वक्त की जरूरत है? इस बिषय पर लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं-डॉ. रमेश ठाकुर का सुझाव एवं लेख जो अपनी राय दे रहे है

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