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सरकारी अनदेखी के कारण पत्रकारों का बड़ा वर्ग डिप्रोशन का शिकार हो गया

हिन्द संबाद आसनसोल इम्तियाज़ खान । प्रिंट मीडिया पर लगातार बढ़ते आर्थिक संकट और सरकार द्वारा कोईं राहत न मिलने से 15 अगस्त पर भी पत्रकारों में निराशा का माहौल है। उन्हें बड़ी उम्मीद थी कि सरकार शायद अब तो कोईं गौर करेगी लेकिन यह उम्मीद धरी की धरी रह गईं। पत्रकारों का कहना है कि प्रिंट मीडिया पर आर्थिक बोझ घटने की जगह बढ़ता ही जा रहा है और सरकार है कि इस तरफ एकदम आंखें बंद करे जैसे यह कोईं मुद्दा ही नहीं है। इससे इस वर्ग में भारी निराशा का माहौल बनता जा रहा है जिसका कोईं समाधान नहीं है। दिल्ली के साथ साथ देश के और भी पत्रकार संगठनों का कहना है कि पिछले डेढ़ वर्ष में पत्रकारों का बड़ा वर्ग डिप्रोशन का शिकार हो गया है, इसका कारण उन्हें अपने जीवन की स्थिति बड़ी अजीब मझदार में नजर आ रही है। देश हो या प्रदेशो की सरकारे कहि भी देखा जाय तो हर जगह पत्रकारों के हितों की अनदेखी की जा रही है जो सरकारे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों के हितों की अनदेखी न करे। सरकार पत्रकारों को पहले से अधिक सुविधाएं देने के लिए उचित कदम उठाए। न कि पत्रकारों को जो सुविधाएं मिल रही हैं, उन्हें छीनने के प्रयास किए जाएं। पत्रकार संगठनों ने इस मामले में एक बार फिर प्राधानमंत्री से उम्मीद की है कि वह इस बार लाल किले से संबोधन में प्रिंट मीडिया की दिक्कतों का जिक्र करते हुए उन्हें राहत की घोषणा करें तो यह बहुत अच्छा होगा। बहुत इस वर्ग के लोग आपका बेहद आभार व्यक्त करेंगे। सरकार इससे पहले इतना क्रूर कभी नहीं हुआ करती थी कम से कम 15 अगस्त 26 जनवरी 2 अक्टूबर को एक विज्ञापन तो जरूर दे ही देती थी पर अब सरकार बिलकुल अनदेखी कर रही है समाचार पत्रों को आज शनिवार होने के कारण शुक्रवॉर की सामको DAVP से विज्ञापन जारी हो जाता था पर इस बार सूखा ही रह गया और अख़बार वाले निरास हो गए आसनसोल के कोई भी संसथान हो या राज्य सरकार भी अख़बार वालो से मुँह मोड़े हुए है। न ईस्टर्न कोल् फील्ड न अड्डा न हीं नगर निगम और गैर सरकारी संस्थानों की बात ही न की जाय तो बेहतर होगा उनके वह तालुक्कात की अहमियत रहती है अगर कोई नेता गण की बात करे तो वो खबर में तो बने रहने के लिया सेकड़ो बार संपर्क करेंगे पर विज्ञापन की बात करे तो ठीक है कर छपवा कर भुगतान के लिए इतना बार दौड़ाएंगे की जितना का भुगतान नहीं उससे ज्यादा का पेट्रोल ही जल जाता है और कई तो अस्वाशन पर आश्वाशन ही देते है भुगतान भूल जाना पड़ता है इस तरह पत्रकारों को निरासा ही हाथ लगता है।

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