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पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से वर्तमान में नई पीढ़ी जैसे फिर से पुराने जमाने की तरफ जा रही

हिन्द संबाद आसनसोल पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से वर्तमान पीढ़ी जैसे फिर से पुराने जमाने की तरफ जा रही है. भले उपजाऊ धान भूमि नहीं हैं मगर धान की खेती हो सकती है। जो लोग मोटरबाइक चला रहे थे पेट्रोल की कीमतों मे बेताहाशा वृद्धि के कारण उन्हें साइकिल की तरफ वापस जाने को मजबूर होना पड़ रहा है । पेट्रोल डीजल की कीमतों मे इस कदर उछाल आ गया है कि खेती से जुड़े किसान अब ट्रैक्टर या मशीनरी की जगह पुरानी जोत वाली बैलगाड़ी और ढेमकी पर भरोसा करने को मजबूर हैं. बाजार में महंगे पेट्रोल के दाम उनकी पंहुच से बाहर हैं। एक फसल की खेती के लिए उनको तीन बार जमीन जोतनी पड़ती है और ट्रैक्टर चलाना पड़ता है। लेकिन इंधन की कीमतों मे जो उछाल आया है उसे देखते हुए शारीरिक श्रम और गाय के हल का उपयोग करना की मशीन की तुलना मे कम लागत वाला है। मवेशी बेचने वाले ट्रैक्टर खरीदने वाले भी अब नई गायों की तलाश कर रहे हैं, गाय खरीद रहे हैं और फिर से जुताई कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर चावल थ्रेसिंग मशीन के मामले में भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में उछाल के कारण भी यही समस्या है। किसानों का दावा है कि पेट्रोकेमिकल धान के मामले में पुराने पत्थर का इस्तेमाल किया जा रहा है.
जमुरिया के बहादुरपुर क्षेत्र के किसान दीपक पाल, दीपक मंडल और हरेराम मंडल ने कहा कि हर साल ट्रैक्टर की मदद से मिट्टी तैयार की जाती है. ट्रैक्टर के मालिक पहले प्रति घंटे 600 रुपये के हिसाब से कई सालो तक लेते थे । इस साल वह रकम 650 से बढ़कर 900 रुपये हो गया है। धान की खेती के लिए एक बीघा जमीन को उपयुक्त बनाने के लिए इस साल ट्रैक्टरों की कीमत अक्सर 3,000 रुपये होती है। उपर से, यह बिना कहे चला जाता है कि इस साल कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि खाद से लेकर से सभी चीजों की कीमतें बढ़ गई हैं। लेकिन अगर वे कड़ी मेहनत करके गायों के साथ हल चलाते हैं, तो वे पूरे साल चावल बना पाएंगे। इसके अलावा, चूंकि सरकार ने पिछले साल से धान नहीं खरीदा है, पिछले साल उन्होंने धान की खेती की और बॉयलर के माध्यम से इसे बेचकर नुकसान किया। किसानों का दावा है कि वे इस साल ज्यादा धान की खेती नहीं कर पाएंगे
जन हित में जारी हिन्द संबाद

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