Share on facebook
Share on twitter
Share on whatsapp
Share on email

पश्चिम बंगाल की तरह ही केरल में भी राजनीतिक हिंसा होती है वामपंथी दल केरल को एक विकसित प्रदेश बनाने का श्रेय लेते हैं

हिन्द संबाद .नई दिल्ली वामपंथी दलों की सरकार जहां भी रही, उन्होंने अपनी ताकत के बूते सत्ता को बरकरार रखने का प्रयास किया। भारत के संविधान को बने 7 दशक से भी अधिक का समय हो चुका है, लेकिन लोकतंत्र में ऐसी घटनाएं शर्मसार करने वाली हैं। पश्चिम बंगाल की तरह ही केरल में भी राजनीतिक हिंसा होती है, अपने वैचारिक विरोधियों को सत्ता के दम पर दबाने का प्रयास होता है। वामपंथी दल केरल को एक विकसित प्रदेश बनाने का श्रेय लेते हैं, लेकिन इसकी आड़ में उन्होंने कितना भ्रष्टाचार किया है, इसके कुछ उदाहरण हाल ही के महीनों में मिले हैं। पश्चिम बंगाल की तरह ही केरल में राजनीतिक हिंसा या सत्ता का दुरुपयोग कर वैचारिक मतभेद रखने वालों को विभिन्न आरोप लगाकर जेल भेजने का इतिहास पुराना है। यद्यपि इस समय इसकी उतनी चर्चा नहीं हो रही है। केरल में दो गठबंधनों की सरकारें ही बदल-बदल कर आती रहीं। एक विशेष विचार रखने वाले लोग कभी सत्ता में न आये, इसके लिये दोनों ने ही प्रयास किया। यदि यह लोकतांत्रिक ढंग से किया जाता, तो इसमें कोई गलत बात नहीं थी, किंतु इसके लिये किसी भी हद तक जाने की भावना गलत है। वर्ष 2017 में तिरुवनंतपुरम के श्रीकार्यम क्षेत्र में आरएसएस के कार्यवाह राजेश की निर्मम हत्या कर दी गयी। उस समय उनकी आयु मात्र 34 वर्ष थी। पुलिस ने इस आरोप में एक व्यक्ति को हिस्ट्रीशीटर बताकर गिरफ्तार किया था। तत्कालीन प्रदेश भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कुमनम राजशेखरन ने इस हत्या के पीछे मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी का हाथ होने का दावा किया था। अभी पिछले ही महीने संघ कार्यकर्ता नंदू की केरल के अलप्पुझा क्षेत्र में हत्या कर दी गयी थी। हत्या का आरोप एसडीपीआई पर लगा था। यह संगठन इस्लामिक संगठन पीएफआई का सहयोगी है। इस प्रकार लगातार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों व स्वयंसेवकों की हत्या केरल में हो रही है। इसी प्रकार कई संघ से जुड़े लोगों पर मुकदमे लाद कर उन्हें जेलों में बंद कर दिया जाता है। इसके पीछे हर बार सिर्फ एक ही आरोप लगता है वाम दलों का एलडीएफ और कांग्रेस का यूडीएफ दोनों वैचारिक रुप से संघ से सहमत नहीं है, इसलिए संघ से जुड़े लोगों पर अत्याचार किया जाता है । उन्हें डर है कि यदि संघ शक्तिशाली हो गया, तो राज्य में भाजपा की सरकार बन सकती है। ऐसे आरोप भाजपा केरल से जुड़े कई नेता लगाते रहे हैं, पर स्थिति अभी तक नहीं बदली। केरल में वाम दलों के नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार भ्रष्टाचार में लम्बे समय से लिप्त रही है। इसका उदाहरण कुछ समय पहले सामने आये सोना तस्करी प्रकरण के रुप में देखने को मिला। इसमें केरल में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का नाम आया क्योंकि तस्करी की मुख्य आरोपी स्वप्ना और विजयन के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। सोना तस्करी के अलावा दिसंबर 2020 में वाम सरकार पर गैरकानूनी तरीके से कुरान मंगाकर केरल निकाय चुनाव के मतदाताओं को बंटवाने का आरोप लगा था। इस आरोप में पिनराई के प्रधान सचिव शिवशंकर को मजबूरन छुट्टी पर जाना पड़ा था। कुरान विवाद के मामले में प्रदेश के शिक्षा मंत्री के.टी. जलील का नाम भी आया था मुख्यमंत्री विजयन पर बाढ़ राहत में लापरवाही के आरोप भी लगे। यह आरोप उन दावों के उलट थे, जिसमें प्रदेश के खुशहाल होने की बात कही जाती रही है। कई स्थानीय नेताओं द्वारा बाढ़ राहत में भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जाते रहे हैं। सीपीएम के प्रदेश सचिव कोडियरी बालकृष्णन के बेटे का नाम ड्रग्स तस्करी में आने के बाद उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। केरल में राजनीतिक हिंसा हो या भ्रष्टाचार की बात, सरकार से लेकर संगठन तक एलडीएफ के नेताओं पर आरोप लगते रहे हैं। यदि किसी प्रशासनिक अधिकारी को अपने ऊपर लगे गंभीर आरोपों के बाद छुट्टी पर भेज दिया जाये, तो समझा जा सकता है कि इस गोरखधंधे में नेताओं के साथ ही प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं। उपरोक्त सोना तस्करी प्रकरण की मुख्य आरोपी स्वप्ना ने केरल सरकार के मंत्रियों के नाम भी लिये थे। अधिकांश एलडीएफ से जुड़े प्रमुख लोगों पर कभी न कभी कोई न कोई आरोप लगा ही है। हाल ही में मेट्रो मैन श्रीधरन ने केरल की वाम सरकार पर लव जिहाद को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया था। जिस प्रकार एलडीएफ ने एक चुनाव में कुरान बटवाई थी, इससे भी ऐसा लगता है कि राजनीतिक हिंसा, भ्रष्टाचार और मुस्लिम तुष्टीकरण का केरल की वाम सरकार में महत्वपूर्ण स्थान है।

Latest News