हिन्द संबाद , आसनसोल साबिर अली : जिनपे भरोसा था जनता को उन्हें खुल कर वोट किया और बिधायक बनाया । पश्चिम बर्द्धमान जिले की जनता ने दलबदलुओं को विधानसभा चुनाव में नकार दिया। जिले में जिन जिन लोगो पे सक था की ये लोग दलबदल कर आये है या जित कर अपने सुविधा के अनुशार फिर दलबदल सकते ह। इसी सब बातो को ध्यान में रखते हुए जनता ने दलबदलुओं को हार का स्वाद चखाया सबसे बड़ी आश्चर्य की बात है की कुल्टी बिधानसभा सीट तृणमूल के लिए सबसे सुरछित सीट थी उसे भी कुल्टी की जनता ने नकार दिया उज्जवल चटर्जी को क्यों की अफवाहों का दौर चला की उज्जवल चटर्जी जरूरत पड़ने पर भाजपा में जा सकते है। इन्ही कारण कुछ a लोग अफवाहों का शिकार हो गए और भाजपा पर भरोसा करना पड़ा। इसमें सबसे अधिक चर्चित नाम पांडवेश्वर के विधायक रहे जितेन्द्र तिवारी का था और एसबीएसटीसी के चेयरमैन रहे रि. कर्नल दीप्तांशु चौधरी का भी ममता ने इन दोनों को काफी सम्मान दिया और ये लोग पीठ में चाकू भोकने का काम किया जिसे जनता ने सही वक़्त पर जबाब दे दिया । वहीं तीसरा नाम आइएनटीटीयूसी जिलाध्यक्ष एवं विधायक रहे विश्वनाथ पड़ियाल का ये पहले तो कांग्रेस फिर तृणमूल एक बार फिर कांग्रेस में जाकर माकपा के समर्थन से बिधायक बने और दलबदल कर तृणमूल में चले गए भाजपा में जाने की अफवा थी या सच ये तो वो ही जाने पर दुर्गापुर की जनता ने उन्हें जितने से पहले ही टिकट मिलते ही मन बना लिया था की पडियाल दलबदलने में माहिर है और एक बार जीतेन्द्र तिवारी ने पडियाल के बारे में कह भी जूक है की वो भाजपा में जाने के लिए ब्याकुल है इसी को लोगो ने मन में बैठा लिया की ऐसे दलबद्लुओ को वोट देने सेर अच्छा की घर में ही बैढे रहे और तृणमूल के वोटर नहीं निकले कारण तृणमूल के उम्मीदवार पडियाल को कम वोट मिला और भाजपा के वोटरों ने खूब वोट किया जिसका नतीजा सामने है की लखन घोरोइ को जित का सेहरा पहनना पड़ा । जितेन्द्र तिवारी कुछ महीने पहले ही नाटकीय ढँग से भाजपा में शामिल हुए थे। वहीं दीप्तांशु चौधरी ने शुभेंदु अधिकारी के साथ ही भाजपा का दामन थामा था। दोनों को ही भाजपा ने इस बार टिकट दिया। जितेन्द्र तिवारी पांडवेश्वर से और दीप्तांशु दुर्गापुर पूर्व से चुनाव लड़े। टीएमसी में रहते हुए जितेन्द्र तिवारी मेयर, विधायक और जिलाध्यक्ष भी थे। वहीं दीप्तांशु सीएम ग्रीवांस सेल के चेयरमैन हुआ करते थे, फिर उन्हें एसबीएसटीसी का चेयरमैन नियु्क्त कर दिया गया। लेकिन दोनों ने टीएमसी छोड़कर चुनाव से पहले भाजपा का दामन थामा। पर जनता ने इनपर भरोसा नहीं जताया। वहीं विश्वनाथ पड़ियाल 2016 में कांग्रेस के टिकट पर वाममोर्चा के समर्थन से चुनाव जीता था। लेकिन कुछ समय बाद ही वह टीएमसी में आ गये। इस बार टीएमसी के टिकट पर चुनाव लड़ा। लेकिन जनता ने उन्हें भी नकार दिया क्यों की लोगो ने पहले कई बाई पडियाल को दलबदलते हुए देखा इसी कारण वोट देने नहीं गए कुछ गए तो पडियाल के जगह किसी और को वोट किया नहीं तो नोटा है ही । वही नोटा का भी अहम् किरदार था उज्जवल चटर्जी को हारने के लिए कुल्टी विधानसभा क्षेत्र में नोटा का कुल 3467 वोट तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार उज्जवल चटर्जी को मिलता है तो उनकी जीत निश्चित थी अफवाहों ने लगभग 3000 वोटर या तो सरफिरे थे या जरूरत से ज्यादा काबिल है जो अफवाहों में बह कर नोटा का प्रयोग किया । वहीं आसनसोल दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के नोटा को कुल 3466 वोट मिला। यदि यह वोट तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में जाती तो तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार सायनी घोष की जीत होती है।
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