भारत को इस्लामिक राज में स्थापित करने की मंशा रखने वाली जमात-ए-इस्लामी से गठबंधन करना कांग्रेस को बहुत महँगा पड़ा है। केरल की जनता ने धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को ताक पर रखने के लिए कांग्रेस को स्थानीय चुनावों में ऐसी सजा दी है कि उसे भविष्य के लिये चेत जाना चाहिए। लेकिन कांग्रेस शायद ही चेते क्योंकि राहुल गांधी के तो सामने ही उनकी नामांकन रैली में खुल कर इस्लामिक झंडे लहराये जा रहे थे। जो नेता चुनाव जीतने के लिए साम्प्रदायिक राजनीति का सहारा ले उससे क्या उम्मीद रखी जा सकती है। इसके अलावा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन यूडीएफ की कमान अब ओमान चांडी या के. मणि जैसे नेताओं के हाथों में नहीं बल्कि एम.एम. हसन और जमात नेता आमिर जैसे लोगों के हाथ में है। जमात-ए-इस्लामी ने इस्तांबुल में हागिया सोफिया म्यूजियम को मस्जिद में बदले जाने का समर्थन किया था जिससे केरल के ईसाई संगठनों में गहरी नाराजगी थी, लेकिन कांग्रेस शायद इसे समझ नहीं पाई या समझ कर भी अनदेखा कर दिया। जमात-ए-इस्लामी के राजनीतिक धड़े वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया के साथ गठबंधन से इंडियन ुआनिअ मुश्लिम लीग और कांग्रेस को केरल में तो नुकसान हुआ ही है साथ ही देश के अन्य प्रांतों में भी नुकसान हो सकता है। भाजपा पहले ही आरोप लगाती रही है कि जमात-ए-इस्लामी और उससे जुड़े संगठा जैसे संगठनों के जरिए कांग्रेस कट्टरपंथी सिंडिकेट को बढ़ावा दे रही है। गौर तालाब ये है की केरल में लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस की जिस तरह सुनामी चली थी और 20 में से 19 लोकसभा सीटों पर पार्टी को विजय मिली थी, उसको देखते हुए माना जा रहा था कि विधानसभा चुनावों में वाम गठबंधन का पत्ता साफ हो जायेगा लेकिन ऐन चुनावों से पहले स्थानीय चुनावों के जो नतीजे सामने आये हैं उससे वाम अपना गढ़ बचाने में कामयाब होता दिख रहा है और भाजपा भी एक बड़ी विजेता के रूप में आगे बढ़ती दिख रही है। नुकसान उठाना पड़ा है तो सिर्फ कांग्रेस को जिसका केरल की अधिकतर लोकसभा सीटों पर कब्जा है। केरल के चुनाव परिणाम मुख्यमंत्री पी. विजयन और सत्तारुढ़ गठबंधन की अगुआ माकपा के लिए संजीवनी साबित हुए हैं। केरल के मुख्यमंत्री के कार्यालय पर जिस तरह गोल्ड स्मगलिंग मामले की छाया पड़ी, केरल के माकपा महासचिव कोडयारी बालाकृष्णनन को अपने बेटे के ड्रग्स मामले में जेल जाने पर पद छोड़ने को बाध्य होना पड़ा, इस सबसे सरकार की छवि काफी खराब हो रही थी लेकिन मुख्यमंत्री पी. विजयन ने कांग्रेस को घेरने के लिए जाल बुना। इसके लिए केरल में क्रिश्चन पार्टी के नेता जोस के. मणि को यूडीएफ से निकाल कर एलडीएफ के साथ जोड़ा। हालांकि इसके लिए मुख्यमंत्री की पार्टी माकपा को अपनी सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना भी झेलनी पड़ी।केरल में अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाई वोट परंपरागत तौर पर कांग्रेस का वोटर रहा है लेकिन जोस मणि केएलडीएफ के साथ आने के बाद सीपीएम ने कांग्रेस के ईसाई वोटों में जबरदस्त सेंध लगा दी। इसके अलावा केरल की ईसाई आबादी इस बात से भी परेशान थी कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन यूडीएफ में इस्लामी ताकतें हावी होती जा रही थीं इसलिए एलडीएफ को समर्थन मिला। कांग्रेस को इस बात से भी नुकसान उठाना पड़ा है कि अधिकांश सीटों पर उसे बागियों का सामना करना पड़ा। यही नहीं यूडीएफ में जिस तरह सीट बंटवारे को लेकर घमासान हुआ उससे भी गठबंधन की छवि खराब हुई। कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन एक तरह से विभाजित परिवार की तरह दिखाई दे रहा था।चुनाव परिणामों की बात की जाये तो सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ ने शानदार जीत दर्ज कर सर्वाधिक सीटें हासिल की हैं जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ रहा है। विजयन के लिए खुश होने की बात इसलिए भी है क्योंकि अकसर पंचायत और निकाय चुनाव में राज्य की सरकार में सत्तारुढ़ गठबंधन के खिलाफ नतीजे आते रहे हैं। चुनाव में सफलता पर मुख्यमंत्री विजयन ने ट्वीट कर कहा कि यह केरल को प्यार करने वाले लोगों का उन लोगों को संदेश है जो इसे नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने एक अन्य ट्वीट किया, ‘‘केरल धन्यवाद। एलडीएफ पर विश्वास करने के लिए धन्यवाद। हम केरल के लोगों के विश्वास से अभिभूत हैं। यह धर्मनिरपेक्षता और समावेशी विकास की जीत है।’’ उन्होंने कहा कि यह ‘‘जनता की जीत’’ है। उन्होंने कहा किएलडीएफ का प्रदर्शन उन लोगों को जवाब है, जो राज्य की उपलब्धियों को कमतर करने की कोशिश में लगे थे। केरल के स्थानीय चुनावों में उठाये गये मुद्दों की बात करें तो राजनीतिक दलों ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की जमीन तैयार करने के लिए राष्ट्रीय मुद्दों को ज्यादा उठाया साथ ही कोविड-19 से निपटने की राज्य सरकार की उपलब्धियों और नाकामियों को भी चुनाव प्रचार में उठाया गया।जहाँ तक भाजपा की बात है तो पिछले चुनाव की तुलना में पार्टी ने कुछ बेहतर प्रदर्शन किया है। भाजपा 24 ग्राम पंचायतों, 10 ब्लॉक पंचायतों और दो नगर पालिकाओं में विजयी रही। भाजपा पलक्कड़ नगरपालिका पर कब्जा करने में सफल रही। यह नगरपालिका क्षेत्र इस मायने में महत्वपूर्ण है क्योंकि सबरीमाला मंदिर इसी के अंतर्गत आता है और मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर हाल में काफी आंदोलन भी हुए। देखा जाये तो भाजपा 2015 के चुनाव की तुलना में कुछ बेहतर प्रदर्शन करती हुई दिख रही है, जब उसने 14 ग्राम पंचायतों और एकमात्र पल्लकड नगर पालिका में जीत दर्ज की थी। भाजपा की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने आरोप लगाया है कि यूडीएफ और एलडीएफ ने तिरुवनंतपुरम में उनकी पार्टी को हराने के लिए साथ मिलकर काम किया। दरअसल भाजपा तिरुवनंतपुरम निकाय पर कब्जा कर शशि थरूर के आधार को हिलाना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि शहरी क्षेत्र में पार्टी का आधार बढ़ा है लेकिन उसके लिए मंजिल अभी दूर है। बहरहाल, चुनाव परिणामों पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पहले से बेहतर जनादेश देने के लिए केरल की जनता का आभार जताया है और कहा है कि हम एलडीएफ और यूडीएफ, दोनों की भ्रष्ट, साम्प्रदायिक और पाखंडी राजनीति को एक्सपोज करने का काम जारी रखेंगे।
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सीपीएम ने कांग्रेस के ईसाई वोटों में जबरदस्त सेंध लगा दी केरल की जनता ने कांग्रेस छोड़ माकपा पर उम्मीद की
- HIND SAMBAD
- January 10, 2021
- 5:27 pm