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भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश एनवी रामन्ना की दुःख

हिन्द संबाद आसनसोल : भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश एनवी रामन्ना ने भारत की न्याय-व्यवस्था के बारे में दो-टूक बात कह दी है। विज्ञान भवन के एक समारोह में उन्होंने कहा कि भारत के पुलिस थानों में गिरफ्तार लोगों के साथ जैसी बदसलूकी की जाती है, वह न्याय नहीं, अन्याय है। वह न्याय का अपमान है। गरीब और अशिक्षित लोगों की कोई मदद नहीं करता। उन्हें कानूनी सहायता मुफ्त मिलनी चाहिए। उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि वे भी हमारी न्याय व्यवस्था के अंग हैं। अदालतों तक पहुँचने का खर्च इतना ज्यादा है और मुकदमे इतने लंबे समय तक अधर में लटकते रहते हैं कि करोड़ों गरीब, ग्रामीण, अशिक्षित लोगों के लिए हमारी न्याय-व्यवस्था बिल्कुल बेगानी बन गयी है। आजकल तो डिजिटल डिवाइस चली है, वह भी उक्त लोगों के लिए बेकार है। दूसरे शब्दों में हमारी न्याय और कानून की व्यवस्था सिर्फ अमीरों, शहरियों और शिक्षितों के लिए उपलब्ध है। न्यायमूर्ति रमन ने हमारे लोकतंत्र की दुखती रग पर अपनी उंगली रख दी है लेकिन इस दर्द की दवा कौन करेगा ? हमारी संसद करेगी। हमारी सरकार करेगी। ऐसा नहीं है कि हमारे सांसद और हमारी सरकारें न्याय के नाम पर चल रहे इस अन्याय को समझती नहीं हैं। उन्हें सब पता है। लेकिन वे स्वयं इसके भुक्तभोगी नहीं हैं। वे जैसे ही सत्ता में आते हैं, उन्हें सारी सुविधाएं उपलब्ध होने लगती हैं। वे पहले से ही विशेषाधिकार संपन्न होते हैं । यदि उनके दिल में परपीड़ा होती तो अंग्रेजों के द्वारा बनाए-गए इस सड़े-गले कानून तंत्र को अब तक वह उखाड़ फेंकते। लेकिन न्याय मूर्ति की इस दुःख भर बातो से किसे असर पड़े गए क्या पुलिस अपनी बेईमानी को छोर्ड देगी ईमानदारी से काम करेगी पुलिस के अला अधिकार तो न्याय की बात करते है लेकिन थानों में बिना लें देन के कोई काम ही नहीं होता लोगो को पेंशन ही किया जाता यह तक की पत्रकारों से भी घुश लेने से नहीं चूकते थाना स्तर के अधिकारी भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश एनवी रामन्ना ने भारत की न्याय-व्यवस्था के बारे में दो-टूक कह देने को किस तरह लेते है ये तो वक़्त ही बताएगा।

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