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केंद्र सरकार तथा आंदोलनकारी किसान नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी बेनतीजा अगली बातचीत 19 जनवरी को होगी

हिन्द संबाद नई दिल्ली : केंद्र सरकार तथा आंदोलनकारी किसान नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी दोनों पक्षों को स्वीकार्य कोई हल अब तक निकल नहीं सका है। वस्तुतः संपूर्ण घटनाक्रम शाहीन बाग की याद दिला रहा है। जिस तरह से किसान आंदोलन के नाम पर चंद मुट्ठी भर अमीर से बेहद अमीर किसानों के नेतृत्व में पंजाब तथा हरियाणा के बहुसंख्य किसानों ने न केवल दिल्ली बल्कि आसपास के चतुर्दिक सामान्य जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है, वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। ये प्रदर्शनकारी या तथाकथित अन्नदाता किसान दिल्ली के समीप सिंघु बॉर्डर पर पिछले पचास दिनों से डेरा डाले बैठे हुए हैं जिससे सामान्य किसानों की रोजी-रोटी पर तो कुठाराघात हो ही रहा है, साथ ही दैनिक मजदूरों और अन्य दिहाड़ी कामगारों को भी अपने जीवकोपार्जन में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। वस्तुतः उनके इस अनवरत प्रदर्शन से दिल्ली तथा संबंधित सभी राज्यों की कानून व्यवस्था संभालने वाली पुलिस तथा प्रशासनिक मशीनरी को इन अन्नदाताओं के धरना स्थलों की सुरक्षा तथा दिल्ली के चारों ओर सभी राज्यों से यहाँ प्रतिदिन आकर काम करने वालों के लिये दैनिक आवागमन सुलभ बनाने तथा सामान्य कानून एवं व्यवस्था की स्थापना करने में भी एड़ी-चोटी एक करनी पड़ रही है। इसमें न केवल देश के करदाताओं का अमूल्य धन नष्ट हो रहा है जिसका अन्यथा सामाजिक कल्याण एवं विकास के कार्यों में उपयोग किया जा सकता था बल्कि पूरे प्रशासनिक अमले का परिश्रम नष्ट हो रहा है जिससे निश्चय ही सामान्य जनजीवन की सुरक्षा बढ़ाई जा सकती थी तथा उनका राष्ट्रहित में उपयोग किया जा सकता था।सरकार ने विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों से तीन कृषि कानून के बारे में अपनी आपत्तियां और सुझाव रखने एवं ठोस प्रस्ताव तैयार करने के लिये एक अनौपचारिक समूह गठित करने को कहा जिस पर 19 जनवरी को अगले दौर की वार्ता में चर्चा हो सकेगी। तीन केंद्रीय मंत्रियों के साथ शुक्रवार को हुई नौवें दौर की वार्ता में प्रदर्शनकारी किसान तीन नये विवादित कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे जबकि सरकार ने किसान नेताओं से उनके रुख में लचीलापन दिखाने की अपील की एवं कानून में जरूरी संशोधन के संबंध अपनी इच्छा जतायी। विज्ञान भवन में करीब पांच घंटे तक चली बैठक में तीनों केंद्रीय मंत्री किसी निर्णायक स्थिति तक नहीं पहुंच सके । इसके बाद दोनों पक्षों ने तय किया कि अगली बैठक 19 जनवरी को होगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार का रूख लचीला है और उन्होंने किसान संगठनों से भी रूख में लचीलापन लाने की अपील की। यह संयोग ही है कि अगले दौर की वार्ता उस दिन होने जा रही है जिस दिन कृषि कानूनों को लेकर गतिरोध दूर करने के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति की पहली बैठक होने की संभावना है। इससे एक दिन पहले उच्चतम न्यायालय उस याचिका पर सुनवाई कर सकती है जो गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर रैली के आह्वान के खिलाफ दायर की गई है। बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संवाददाताओं से कहा कि दोनों वार्ताएं साथ साथ जारी रह सकती है। किसान संगठन सरकार से वार्ता जारी रखना चाहते हैं और अदालत द्वारा भी संकट के समाधान तक पहुंचने के लिये समिति का गठन किया गया। उन्होंने कहा, ‘‘हमें इसपर कोई आपत्ति नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने जो समिति बनाई है, वह समिति भी समाधान ढूंढ़ने के लिए है। अनेक स्थानों पर चर्चा होती है तो हो सकता है कि किसी चर्चा के माध्यम से रास्ता निकल सके।’’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार की कोशिश है कि वार्ता के माध्यम से कोई रास्ता निकले और किसान आंदोलन समाप्त हो। उन्होंने कहा, ‘‘किसान सर्दी में बैठे हुए हैं। कोरोना का भी संकट है। सरकार निश्चित रूप से चिंतित है। इसलिए सरकार खुले मन से और बड़प्पन से लगातार चर्चा कर रही है । ’’ तोमर ने कहा, ‘‘हमने उनको (किसान संगठनों) यह भी सुझाव दिया कि वे चाहें तो अपने बीच में एक अनौपचारिक समूह बना लें… जो लोग ठीक प्रकार से कानून पर बात कर सकते हैं… सरकार से उनकी अपेक्षा क्या है ?… कानूनों में किसानों के प्रतिकूल क्या है… इसपर आपस में चर्चा करके और कोई मसौदा बनाकर वे सरकार को दें तो सरकार उसपर खुले मन से विचार करने को तैयार है।’’ तीनों कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने और विवाद को सुलझाने के मकसद से समिति गठित करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए तोमर ने कहा कि सरकार उच्चतम न्यायालय के आदेशों के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने जो निर्णय दिया है, उसका भारत सरकार स्वागत करती है। जो समिति बनाई गई है, वह जब भारत सरकार को बुलाएगी तो हम अपना पक्ष प्रस्तुत करेंगे। अपनी बात निश्चित रूप से रखेंगे।’’ किसान नेता जोगिन्दर सिंह उग्रहान ने संवाददाताओं से बैठक के बाद कहा कि किसान संगठनों ने सरकार से तीनों कानून रद्द करने का आग्रह किया लेकिन केंद्र ऐसा करने को अनिच्छुक दिखी। उन्होंने कहा, ‘‘ हमने 19 जनवरी को दोपहर 12 बजे फिर से मिलने का फैसला किया है। ’’ उग्रहान ने कहा कि बैठक के दौरान किसान संगठनों के नेताओं ने पंजाब के उन ट्रांसपोर्टरों पर एनआईए के छापे का मुद्दा उठाया जो किसान विरोध प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हैं और आवाजाही की सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं।

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