Share on facebook
Share on twitter
Share on whatsapp
Share on email

युगों पुरानी जाति आधारित अन्यायपूर्ण और भेदभावकारी समाज के बिरुद्ध थे बाबासाहेब

हिन्द संबाद आसनसोल इम्तियाज़ खान : भारत में लोकतंत्र का सच है हमारे देश का संबिधान जिश्मे सबको समान अधिकार दिया गया की जब तक लोकतंत्र को गणराज्य से जोड़ने या लोकतंत्र को संसदीय सरकार से जोड़ने से पैदा हुई गलत फहमी दूर नहीं हो जाती, इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं दिया जा सकता। भारतीय समाज व्यक्तियों से नहीं बना है। यह असंख्य जातियों के संग्रहण से बना है, जिनकी अलग अलग जीवन शैली है और जिनका कोई साझा अनुभव नहीं है तथा न ही आपस में लगाव या सहानुभूति है। इस तथ्य को देखते हुए इस बिंदु पर बहस करने का कोई मतलब ही नहीं है। समाज में जातिव्यवस्था समाज में उन आदर्शों की स्थापना तथा लोकतंत्र की राह में अवरोध है । —इसी संग्रह से डॉ. बाबासाहब आंबेडकर एक राष्ट्रीय नेता थे। मै भी नहीं मानता की उन्हें मात्र दलित नेता कहना, बल्कि बाबा साहेब को तो विश्व के महान नेताओ में सुमार करना चाहिए बाबा साहिब भीम राव आंबेडकर के सुझाओ को पुरे विश्व में फ़ैलाने की आवयश्कता है उनकी विद्वत्ता, जनआंदोलनों, सरकार में उनकी भूमिका के साथ न्याय नहीं होगा। युगों पुरानी जाति आधारित अन्यायपूर्ण और भेदभावकारी समाज में सामाजिक समानता और सांस्कृतिक एकता के जरिए लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का उनका व्यापक दृष्टिकोण जगजाहिर है। मानवाधिकारों के राष्ट्रवादी और साहसी नेता के रूप में उनके भाषणों में आधुनिक भारत की सामाजिक चेतना को जगाने के लिए उनके जीवनपर्यंत समर्पण की झलक मिलती है। लोकतंत्र के प्रबल हिमायती डॉ. भीमराव आंबेडकर के लोकतंत्र, राजसत्ता तथा शासन प्रशासन के विषय में दिए पथप्रदर्शन करनेवाले भाषणों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण संकलन। फिर भी हमारे नेता गण बाबा साहिब भीमराव आम्बेडकर के किताबो से उनकी लिखी हर रचनाओ से सिख क्यों नहीं लेते बिना वज़ा अपनी सान की वजह से किसी की नहीं सुनते संसद में देश भर से सांसद जाते है अपने संसदीय क्षेत्र के साथ साथ देश की हालत पर चर्चा करने के लिए जो भारतीय संबिधान ने सभी को उनका अधिकार दे रखा है लेकिन अब कुछ वर्षो से संसद की कारवाही में ववधान डालना और हंगामा कर संसद को नहीं चलने देना ये आम बात हो गई क्या बाबा साहिब भीमराव आम्बेडकर ने अपनी किताबो से आज के नेता गण यही सिख रहे है बाबा साहब ने सभी को यही जागरूक करने की कोशिस की है की । युगों पुरानी जाति आधारित अन्यायपूर्ण और भेदभावकारी समाज में सामाजिक समानता और सांस्कृतिक एकता के जरिए लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का उनका व्यापक दृष्टिकोण जगजाहिर है।युगों पुरानी जाति आधारित अन्यायपूर्ण और भेदभावकारी समाज के बिरुद्ध थे बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर मानवाधिकारों के राष्ट्रवादी और साहसी नेता के रूप में उनके भाषणों में आधुनिक भारत की सामाजिक चेतना को जगाने के लिए उनके जीवनपर्यंत समर्पण की झलक मिलती है बाबा साहब ने राष्ट्रीय एकता पर ज्यादा जोर दिया और आज उनके बातो को मैंने से हम लोग मुँह मोड़ रहे है और सामाजिक चेतना को खोये जा रहे है अपनी स्वार्थ के वजह से जातिवाद – जातिवाद का खेल खेल रहे है नेता गण संसद नहीं चलने दे रहे है इस मानसून सत्र में देखे तो संसद के अंदर गतिरोध जारी थी संसद चलने नहीं दिया गया ये सब क्या है सामाजिक सरोकार गायब है युगों पुरानी जाति आधारित अन्यायपूर्ण और भेदभावकारी समाज में सामाजिक समानता और सांस्कृतिक एकता के जरिए लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का उनका व्यापक दृष्टिकोण जगजाहिर है। मानवाधिकारों के राष्ट्रवादी और साहसी नेता के रूप में उनके भाषणों में आधुनिक भारत की सामाजिक चेतना को जगाने के लिए उनके जीवनपर्यंत समर्पण की झलक मिलती थी वो गायब है।

Latest News