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इजराइल में हुए चुनाव में कांटे की टक्कर के बाद ‘राम’ इस्लामी पार्टी किंगमेकर

हिन्द संबाद तेल अवीव एजेंसिया : . लम्बे समय से शाषण कर रहे इजराइल के मौजूदा प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए कठिन हो गया है इजराइल में हुए चुनाव में कांटे की टक्कर के बाद ‘राम’ नाम की एक कट्टर अरब इस्लामी पार्टी किंगमेकर बनकर उभरी है। गुरुवार सुबह तक 90 फीसदी वोटों की गिनती होने के बाद भी घोर दक्षिणपंथी माने जाने वाली नेतन्याहू की पार्टी लिकुड और उसके सहयोगी दलों को 59 सीटें मिलती हुई दिख रही हैं। इजरायल की संसद नेसेट में कुल 120 सीटें हैं। ऐसे में बहुमत के लिए बेंजामिन नेतन्याहू को कम के कम 61 सीटों की व्यवस्था हर हाल में करनी ही होगी। नेतन्याहू के गठबंधन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनके विरोधी दलों के गठबंधन के बीच अंतर बहुत कम है। नेतन्याहू के विरोधी दलों के गठबंधन को 56 सीटें मिलने का अनुमान है। ऐसे में राम पार्टी की सरकार बनाने में बड़ी भूमिका देखी जा रही है। इस चुनाव में राम पार्टी को कम से कम 5 सीटें मिलने का अनुमान है। अगर वह लिकुड पार्टी के गठबंधन को समर्थन दे देती है तो नेतन्याहू के फिर से प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा हो जाएगा । बेंजामिन नेतन्याहू अपने कट्टर राष्ट्रवादी विचारधारा के लिए जाने जाते हैं। वे फिलिस्तीनियों को अधिक छूट दिए जाने या फिर गाजा पट्टी में इजरायली कॉलोनियों के विस्तार को रोकने के खिलाफ रहे हैं। जबकि राम पार्टी की विचारधारा ठीक इसके विपरीत है। ऐसे में यह देखना जरूरी होगा कि क्या राम अपने अप्राकृतिक सहयोगी कहे जाने वाले कट्टर राष्ट्रवादी लिकुड पार्टी को समर्थन देता है कि नहीं।
इस पार्टी ने फिलहाल किसी को समर्थन देने की घोषणा नहीं की है लेकिन हालात को देखते हुए इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि यूनाइटेड अरब लिस्ट, जिसे हिब्रू में राम कहा जाता है, इस बारे में फैसला कर सकती है कि इजराइल के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे नेतन्याहू सत्ता में रहेंगे या नहीं। विपक्षी दल के नेता याईर लपिड ने रक्षा मंत्री बेनी गांट्ज के सहयोग से पिछले साल चुनाव लड़ा था लेकिन नेतन्याहू और गांट्ज के बीच सत्ता की साझेदारी को लेकर हुए समझौते के बाद वह पीछे हट गए थे। इस बार उन्होंने नेतन्याहू को हराने का दावा करते हुए प्रचार किया है। राम पार्टी इजरायल में अरब मूल के निवासियों का नेतृत्व करने का दावा करती है। यहूदी बहुल इस देश में अरब मुस्लिमों की तादात बहुत ज्यादा नहीं है। उनमें से भी बहुत से मुस्लिम मतदाता अलग-अलग पार्टियों के समर्थक हैं। ऐसा पहली बार देखा गया है कि इजरायल के चुनाव में फिलिस्तीन और अरब देशों के साथ अच्छे रिश्ते रखने के समर्थक राम पार्टी को पांच सीटों के मिलने के बराबर वोट मिला है। इजरायल की संसद नेसेट का चुनाव अनुपातिक मतदान प्रणाली के आधार पर होता है। जिसमें मतदाता को बैलेट पेपर पर प्रत्याशियों की जगह पार्टी को मतदान करना होता है। पार्टियों को मिले मत प्रतिशत के अनुपात में उन्हें संसद की सीटें आवंटित कर दी जाती हैं। यह प्रक्रिया 28 दिनों के अंदर पूरी कर ली जाती है। अगर किसी पार्टी को 10 फीसदी वोट मिलता है तो उसे संसद की कुल 120 सीटों का 10 फीसदी यानी 12 सीटें दी जाती हैं। किसी भी पार्टी को नेसेट (संसद) में पहुंचने के लिए कुल मतदान में से न्यूनतम 3.25 फीसदी वोट पाना जरूरी है। यदि किसी पार्टी का वोट प्रतिशत 3.25 से कम होता है तो उसे संसद में सीट नहीं दी जाती है। चुनाव से पहले इजरायल की हर पार्टी अपने उम्मीदवारों के प्रिफरेंस के आधार पर एक सूची जारी करती है। इसी के आधार पर चुनाव में जीत के बाद सांसद को चुना जाता है। अगर किसी सांसद की कार्यकाल के दौरान मौत हो जाती है तो इस सूची में शामिल बाद के नेताओं को मौका दिया जाता है। है। यहूदी बहुल इस देश में अरब मुस्लिमों की तादात बहुत ज्यादा नहीं है। उनमें से भी बहुत से मुस्लिम मतदाता अलग-अलग पार्टियों के समर्थक हैं। ऐसा पहली बार देखा गया है कि इजरायल के चुनाव में फिलिस्तीन और अरब देशों के साथ अच्छे रिश्ते रखने के समर्थक राम पार्टी को पांच सीटों के मिलने के बराबर वोट मिला है। इजरायल की संसद नेसेट का चुनाव अनुपातिक मतदान प्रणाली के आधार पर होता है। जिसमें मतदाता को बैलेट पेपर पर प्रत्याशियों की जगह पार्टी को मतदान करना होता है। पार्टियों को मिले मत प्रतिशत के अनुपात में उन्हें संसद की सीटें आवंटित कर दी जाती हैं। यह प्रक्रिया 28 दिनों के अंदर पूरी कर ली जाती है। अगर किसी पार्टी को 10 फीसदी वोट मिलता है तो उसे संसद की कुल 120 सीटों का 10 फीसदी यानी 12 सीटें दी जाती हैं। किसी भी पार्टी को नेसेट (संसद) में पहुंचने के लिए कुल मतदान में से न्यूनतम 3.25 फीसदी वोट पाना जरूरी है। यदि किसी पार्टी का वोट प्रतिशत 3.25 से कम होता है तो उसे संसद में सीट नहीं दी जाती है। चुनाव से पहले इजरायल की हर पार्टी अपने उम्मीदवारों के प्रिफरेंस के आधार पर एक सूची जारी करती है। इसी के आधार पर चुनाव में जीत के बाद सांसद को चुना जाता है। अगर किसी सांसद की कार्यकाल के दौरान मौत हो जाती है तो इस सूची में शामिल बाद के नेताओं को मौका दिया जाता है।